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लेखनी प्रतियोगिता -07-Aug-2023 जिन्दगी एक समझौता है

            जिन्दगी एक समझौता है

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       हमारी जिन्दगी भी बहुत  अजीव है। यह हर पल रंग बदलती है। हमें कितनी बार लाचारी में इस जिन्दगी के साथ  समझौता करना पड़ जाता है। इसी तरह के समझौते पर एक मार्मिक कहानी प्रस्तुत है। यह कहानी बिल्कुल  सत्य घटना पर आधारित  है। यह कहानी अभी भी जहाँ में रहता हूँ वहाँ मेरे इर्द गिर्द  घूम रही है।

             "अमन मेरी बात सुनो यार तुम पापा से बात करो कि वह तुम्हें पचास लाख रुपये कुछ दिन के लिए  उधार देदें।  यह उधार  तुम लोंग पास होते ही लौटा देना। ऐसे समय पर अपने ही काम आते हैं।"  एकता अमन को समझाते हुए  बौली।
           ठीक है मैं पापा से गाँव जाकर बात करता हूँ फौन पर तो बात करना ठीक नहीं है।"  अमन एकता को बोला।

         शनिवार  के दिन अमन पापा के पास पहुँच गया।

       "अमन तू अचानक कैसे आया है तूने कोई  फौन भी नहीं किया सब कुशल  है।वह भी अकेला बहू को क्यौ नहीं लाया?", राम नारायण  ने बेटे को अचानक  आया देखकर  पूछा।

             "पापा आपसे कुछ बात करनी थी मैने सोचा दो दिन की छुट्टी है आप दोनों से मिलना भी हो जायेगा और बात भी कर लूंगा।", अमन मक्खन लगाता हुआ  बोला।

       " बोल ? ऐसी क्या बात है जिसके लिए  तू बहू को अकेली छोड़कर चला आया है?" राम नारायण  ने पूछा।

      "पापा  असल में मैंने जिस फ्लैट का सौदा किया था अब उसकी 31 मार्च तक  रजिस्ट्री करानी थी । लौन मंजूर होने में अभी एक महीना लगेगा।आप मुझे एक महीने के लिए  पचास लाख उधार देदो लोन आते ही वापिस  कर दूंगा।" ,अमन हकलाता हुआ  बोला।

         राम नारायण  ने दुनियां देखी थी उनका मन नहीं मान रहा था क्यौकि  यह रकम उन्होंने  बुढ़ापे  के लिए  सुरक्षित रखी थी।

        लेकिन  पत्नी बोली ," ऐसे समय मैं हम काम नहीं आयेंगे तो और दूसरा कौन काम आयेगा।"

        राम  नारायण  ने पत्नी की जिद के कारण  पचास लाख  का चैक दे दिया।
       कुछ समय बाद राम नारायण  की पत्नी स्वर्ग सिधार  गयी अब राम नारायण  अकेले पड़ गये। वह अमन के पास शहर चलै गये। अमन ने पचास लाख  रुपये वापिस नहीं किये।

     जब उन्हौने अमन से पैसे मांगे तब वह नाराज  होकर  बोला," पापा आप इन रुपयौ का क्या करोगे? आपको दो वक्त  की रोटी खाने के लिए  मिल रही है। और क्या चाहिए।  वैसे भी आपके बाद यह पैसा मेरा ही है। इसमें छुटकी का तो कोई  हक नहीं बनता है।"

   लेकिन राम नारायण  रुपये देने की जिद कर रहे थे।अब इससे नाराज होकर अमन व एकता ने उनसे बात करना ही बंद कर दिया। उनको खाना भी समय पर देना बन्द कर दिया।

           उसी समय अमन की कम्पनी ने उसे अमेरीका भेज दिया । एकता भी उसके साथ चली गयी। अमन ने अपना फ्लैट किराये पर देकर पापा को गाँव जाने के लिए  बोल दिया।

            राम नारायण  इस घटना से  परेशान  होकर एक ऐसे बृद्धाश्रम  मैं चले गये जहाँ  रुपये पैसे से सब सुबिधाऐ उपलब्ध  थी।

     बृद्धाश्रम  पहुँचकर  उन्होंने बेटे पर पचास लाख रुपये वापिस  न देने के कारण  कोर्ट  केस कर दिया।यह केस अमन का वकील ही देख रहा था क्यौकि अमन का विदेश से तारीख पर आना असम्भव था।

          अंत में जीत राम नारायण   की हुई  और अमन को कोर्ट  के आदेश के कारण पचास  लाख ब्याज सहित वापिस  करने पड़े उसके साथ कोर्ट  का खर्चा भी देना पड़ा।
       राम नारायण  आज भी बृद्धाश्रम  में रहकर  अपना जीवन  ब्यतीत कर रहे है। उसके बाद  अमन कभी भी अपने पिता से मिलने नहीं आया। राम नारायण  ने भी जिन्दगी के साथ  समझौता कर लिया है और बृद्धाश्रम  में ही रह रहे है। हाँ उनके  मन में ख्याल अवश्य  आता है कि क्या इसीलिए  औलाद  को पढा लिखाकर  काबिल बनाते है कि वह एक दिन  घर से बाहर  निकाल  देंगी और उनको दर दर भटकना होगा।

आज की दैनिक  प्रतियोगिता  हेतु रचना।
नरेश शर्मा "पचौरी"


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3 Comments

madhura

19-Aug-2023 07:13 AM

wow story

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Varsha_Upadhyay

08-Aug-2023 04:29 AM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

07-Aug-2023 04:37 PM

👌👌👌👌

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